अध्याय 2 का श्लोक 12 न, तु, एव, अहम्, जातु, न, आसम्, न, त्वम्, न, इमे, जनाधिपाः । न, च, एव, न, भविष्यामः, सर्वे, वयम्, अत:, परम् ।। न तो ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नहीं था अथवा तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे। गीता सार अध्याय 3 का श्लोक 12 ईष्टान् भोगान्, हि, वः, देवाः, दास्यन्ते, यज्ञभाविताः। तैः दत्तान्, अप्रदाय, एभ्यः, यः, भुङ्क्ते, स्तेन्ः, एव, सः।। यज्ञों में प्रतिष्ठित इष्ट देव अर्थात् पूर्ण परमात्मा को भोग लगाने से मिलने वाले प्रतिफल रूप भोगों को तुम को यज्ञों के द्वारा फले देवता इसका प्रतिफल देते रहेगें। जो इनको बिना दिये अर्थात् यज्ञ दान आदि नहीं करते स्वयं ही खा जाते हैं, वह वास्तव में चोर हैं। जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा अनुवादित। अध्याय 5 का श्लोक 6 संन्यास, तु, महाबाहो, दु:खम्, आप्तुम्, अयोगतः । योगयुक्तः, मुनि, ब्रह्म, नचिरेण, अधिगच्छति।। हे अर्जुन! इसके विपरित कर्म सन्यास से तो शास्त्रविधि रहित साधना होने के कार...