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श्रीमद्भगवद्गीता के रहस्य

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असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्। अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम्॥ वे आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य कहा करते हैं कि जगत् आश्रय रहित, सर्वथा असत्य और बिना ईश्वर के, अपने-आप केवल स्त्री-पुरुष के संयोग से उत्पन्न है, अतएव केवल काम ही इस का कारण है। इस के सिवा और क्या है? 【गीता अध्याय 16/8】 एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः। प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽहिताः। इस मिथ्या ज्ञान को अवलम्बन कर के-जिन का स्वभाव नष्ट हो गया है तथा जिनकी बुद्धि मन्द है, वे सब का अप कार करनेवाले क्रूरकर्मी मनुष्य केवल जगत के नाश के लिये ही समर्थ होते हैं। 【गीता जी अध्याय 16/9】 श्रीमद भगवत गीता अध्याय 8 के श्लोक 15 गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि 【माम उपेत्य】 मुझे प्राप्त होने वाले का 【 पुनर्जन्म 】 पुनर्जन्म यानी जन्म-मरण बना रहेगा जो 【 दु:खालयम 】 दु:खों का घर है | यहां का जीवन (अशाश्वतम् )क्षणभंगुर है जो महात्मा परम सिद्धि को प्राप्त है वह पुनर्जन्म को 【 न आप्नूवन्ति 】 प्राप्त नहीं होते हैं गीता अध्याय 8 श्लोक 16 गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि हे अर्जुन! 【 माम्】 मुझे 【उ...