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मुक्ति पाना आसान है या मुश्किल?

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पूर्ण मुक्ति पाना बहुत ही आसान है। जैसा कि हमे सत्संगों के माध्यम से पता चला है। इस से अर्ल कोई कार्य नहीं है। पर यहाँ पर पाखण्डवाद व मनमुखि भक्ति साधना बहुत ही ज्यादा फैली हुई है जिस कारण से लोग अलग अलग प्रकार से व शरीर को कष्ट देने वाली साधनाये करते हैं। जो मुक्ति नई दिलवा सकती। पूर्ण मुक्ति-  इनके लिये हमको शास्त्रनेकूल भक्ति  साधना करनी होगी।  और पूर्ण गुरु बना कर भगति व साधना करनी है जैसा कि गीता जी 4/34  व अन्य सभी सद्ग्रन्थ कहते है। 【शास्त्रनुकूल भक्ति व शास्त्रनुकूल कर्म 】 सतगुरु की पहचान संत गरीबदास जी की वाणी में - ”सतगुरु के लक्षण कहूं, मधुरे बैन विनोद। चार वेद षट शास्त्र, कहै अठारा बोध।।“ पूर्ण संत चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा। 

जन्माष्टमी

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अध्याय 2 का श्लोक 12   न, तु, एव, अहम्, जातु, न, आसम्, न, त्वम्, न, इमे, जनाधिपाः ।    न, च, एव, न, भविष्यामः, सर्वे, वयम्, अत:, परम् ।।    न तो ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नहीं था अथवा तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे। गीता सार अध्याय 3 का श्लोक 12  ईष्टान् भोगान्, हि, वः, देवाः, दास्यन्ते, यज्ञभाविताः।   तैः दत्तान्, अप्रदाय, एभ्यः, यः, भुङ्क्ते, स्तेन्ः, एव, सः।।  यज्ञों में प्रतिष्ठित इष्ट देव अर्थात् पूर्ण परमात्मा को भोग लगाने से मिलने वाले प्रतिफल रूप भोगों को तुम को यज्ञों के द्वारा फले देवता इसका प्रतिफल देते रहेगें। जो इनको बिना दिये अर्थात् यज्ञ दान आदि नहीं करते स्वयं ही खा जाते हैं, वह वास्तव में चोर हैं। जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा अनुवादित। अध्याय 5 का श्लोक 6  संन्यास, तु, महाबाहो, दु:खम्, आप्तुम्, अयोगतः ।   योगयुक्तः, मुनि, ब्रह्म, नचिरेण, अधिगच्छति।।  हे अर्जुन! इसके विपरित कर्म सन्यास से तो शास्त्रविधि रहित साधना होने के कार...